Skip to main content

मुसलमान की आर्मी

मुसलमानों की देशभक्ति  राष्ट्र प्रेम पर सवाल उठाने वालों को करारा जवाब देतें है राजस्थान के मुस्लिम......

पूरे भारत मे हजारों गाँव है पर उन सारे हजारों गांव में एक मुसलमानों का गांव है धनोरी जिसे आर्मी विलेज का खिताब मिला 2016 में और पूरे भारत में एक ऐसा गांव है जिसमें सबसे ज्यादा फौजी सिर्फ उसी गांव के हैं
#देश में एक तरफ जहां #मुसलमानों को शक की दृष्टि से देखा जाता है तथा उन पर देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप लगते रहें हैं वहीं राजस्थान के #शेखावाटी क्षेत्र के झुंझुनू, सीकर, चूरू व नागौर जिलों में एक ऐसी #मुसलमान कौम #कायमखानी रहती है जिनकी कई पीढिय़ां सेना में देश सेवा करते हुये गुजर गयी। कायमखानियों द्वारा देश सेवा में किये गये योगदान को देखें तो देश को मुसलमानों पर गर्व महसूस होगा।

मात्र चार-पांच जिलो तक ही सिमटे मुस्लिम कायमखानियों की संख्या तीन-चार लाख के करीब होगी। सेना में भर्ती होना तो मानो कायमखानियों का शगल है। आज भी कायमखानी मुस्लिम युवक की पहली पसन्द सेना में भर्ती होना ही है। कायमखानी युवक ग्रिनेडीयर में सबसे ज्यादा भर्ती होते हैं इसीलिये भारतीय सेना की ग्रिनेडीयर में 13 फीसदी व कैवेलेरी में 4 फीसदी स्थान कायमखानियों के लिये आरक्षित हैं।

झुंझुनू जिले मे कायमखानी समाज के आज भी ऐसे कई परिवार मिल जायेंगें जिनकी लगातार पांच पीढिय़ां सेना में कार्यरत रहीं हैं। धनूरी गांव के मरहूम दफेदार भूरे खान 30 मार्च 1902 से 16 जुलाई 1916 तक 33 लाईट कैवेलेरी में सेवा दी थी। भूरे खान के पुत्र रिसालेदार कुतुबुद्दीन खान 4 मई 1923 से 4 जून 1947 तक 17 पूना हाऊस में सेवारत रहे।  उनके पुत्र गुलाम मोहीउद्दीन खान 21 जून 1950 से 31 अगस्त 1979 18 कैवेलेरी व 73 आम्र्ड रेजीमेंट में तैनात रहे। इस परिवार का चौथा सदस्य कर्नल जमील अहमद खान 9 मार्च 1985 को 76 कवचित रेजीमेन्ट में सेकेण्ड लेफ्टिनेंट में चयन हुआ था वर्तमान में भारतीय सेना में जम्मू एवं कश्मीर में कर्नल पद पर तैनात है। कर्नल जमील अहमद खान के पुत्र लेफ्टिनेंट बिलाल खान भी 2012 में सेना में भर्ती हुए है।

धनूरी गांव के गुलाम मोहीउद्दीन खान बताते हैं कि कैवेलरी यूनिट पहले के जमाने में सेना की सबसे बहादुर यूनिट होती थी। कैवेलरी यूनिट के जवान घोड़ों पर सवार होकर अगली पंक्ति में दुश्मन से सीधे युद्ध करते थे। इसके बाद ही दूसरी पंक्ति युद्ध करती थी। इसके बाद समय बदला और घोडों से युद्ध बंद हो गए और इस यूनिट को टैंक दे दिए गए जो अब पहली पंक्ति मे युद्ध करते है।

खान बताते हैं कि उनकी परवरिश भी कैवेलरी माहौल में हुई और उसी समय से कैवेलरी में भर्ती होने का जज्बा पैदा हो गया था जो आज भी जारी है। वे इस बात के लिए फक्र करते हैं कि उनकी पांच पीढियां सेना में है और आगे भी वे सेना में जाने की बात कहते हैं। उन्होंने  बताया कि पांच- पांच पीढियों के सेना में और वो भी कैवेलरी रजिमेंट मे भर्ती होने का गौरव केवल उनके परिवार को है इसलिए उन्हें और उनके परिवार को कैवेलरी खानदान के नाम से जाना जाता है।

झुंझुनू जिले का नूआ वह खुशनसीब गांव है जो सैनिकों के गांव के लिए प्रसिद्ध है। नूआ  गांव के पूर्व सैनिक मोहम्मद नजर खां के आठ बेटे हैं। सात बेटे सेना में बहादुरी दिखाते हुये देश के लिए लड़ाइयां लड़ीं। इस परिवार के पांच भाइयों ने भारत-पाक के बीच 1971 की जंग में अलग-अलग मोर्चों पर रहते हुए दुश्मन के दांत खट्टे किए थे। 1965 के भारत-पाक युद्ध के वक्त भी इसी परिवार के चार भाई गोस मोहम्मद, मकसूद खां, लियाकत खां, शौकत खां ने मोर्चा लिया था। मरहूम सिपाही नजर मोहम्मद खां के समय से चली आ रही देश रक्षा की परम्परा पांचवीं पीढ़ी में बरकरार है।

इसी गांव के दफेदार फैज मोहम्मद के परिवार की चौथी पीढ़ी देश रक्षा के लिए सेना में है। नूआ निवासी दफेदार फैज मोहम्मद 23 अगस्त 1919 में 18 कैवेलरी में सेना में भर्ती हुए। 1939 तक सेना में रहते हुए जर्मनी में दूसरे विश्व युद्ध में भाग लिया। फैज मोहम्मद और उनके भाई इमाम अली खान व यासीन खान भी दूसरे युद्ध में देश के लिए लड़ रहे थे। इस युद्ध में इन तीनों भाइयों में से यासीन खान जर्मनी में शहीद हो गए। देश रक्षा की यह परम्परा आजादी से पूर्व शुरू हुई और आज भी बरकरार है।

फैज मोहम्म्द ने अपने बेटे मुराद खान को सेना में भेजा। मुराद ने वालिद की इच्छा को आगे बढ़ाते हुए बेटे और पोतों को भी देश के लिए सरहदों पर भेजा। आज कायमखानी परिवार मुराद खान के तीन पोते देश के लिए सेना में तैनात है। उनके बेटे मुराद अली खान 13 जून 1950 में 73 आर्मर्ड कोर में भर्ती हुए। मुराद अली खान ने 1962, 1965 एवं 1971 के युद्धों में भाग लेकर दुश्मन के नापाक इरादों को नेस्तनाबूद किया।

1965 के भारत-पाक युद्ध में नूआ गांव के कायमखानी मुस्लिम समाज के कैप्टन अयूब खान ने पाकिस्तानी पैटन टैंको को तोडक़र युद्ध का रूख ही बदल डाला था। उनकी वीरता पर उन्हे वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। कैप्टन अयूब खान 1985 से 1989 तक व 1991 से 1996 तक झुंझुनू से लोकसभा के सांसद तथा भारत सरकार में कृषि राज्य मंत्री भी रह चुके हैं।

कैप्टन अयूब खान राजस्थान से लोकसभा चुनाव जीतने वाले एक मात्र मुस्लिम सांसद रहें हैं। कैप्टन अयूब खान के दादा, पिता सेना में कार्य कर चुके हैं। उनके अनेको परिजन व उनके बच्चे आज भी सेना में कार्यरत हैं। कैप्टन अयूब खान के परिवार की पांचवीं पीढ़ी अभी सेना में कार्यरत है।

कायमखानी मुस्लिम समाज के अनेक लोग विभिन्न सरकारी उच्च पदों पर कार्यरत और रहे है। झाडोद डीडवाना के भवंरु खान राजस्थान उच्च न्यायालय में जज है, वहीं चोलुखा डीडवाना के कुंवर सरवर खान राजस्थान पुलिस में महानिरीक्षक है। नूआ झुंझूनू के अशफाक हुसैन खान भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी है तो सुजानगढ़ के मोहम्मद रफीक जस्टिस है। नूआ के लियाकत अली पूर्व पुलिस महानिरीक्षक व राजस्थान वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रहें हैं। खालिद हुसैन झुंझुनू नगर परिषद के सभापति रह चुके है।

बकोल गुलाम मोहम्मद खान बेसवा कायमखानी समाज में शिक्षा के प्रति रूझाान प्रारम्भ से ही रहा है इसी कारण सेना के साथ ही अन्य सरकारी सेवाओं में भी समाज के काफी लोग कार्यरत है। कायमखानी समाज अपने आप में एक विरासत संजोये हुये है।

प्रथम विश्वयुद्ध में 34 वीं पूना होर्स की कायमखानी स्क्वाड्रन ने फिलिस्तीन के पास हाईफा पर कब्जा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसमें 12 कायमखानी जवान शहीद हुये थे। आज भी हाईफा विजय की याद में हाईफा डे समारोह मनाया जाता है।

प्रथम विश्वयुद्ध में करीबन 70 कायमखानी जवानों को विभिन्न सम्मानपत्रों से सम्मानित किया गया था। प्रथम विश्वयुद्ध में कायमखानियों द्वारा प्रदर्शित उनके साहस, शूरवीरता व वफादारी से प्रभावित होकर अंग्रेज हुकूमत ने उन्हे मार्शल रेस मानते हुये फौज में उनके लिये स्थान आरक्षित किये थे।

द्वितीय विश्वयुद्ध में 18 वीं कैवेलेरी के कायमखानियों का स्क्वाड्रन मिडिल ईस्ट में दुश्मनों से घिर जाने के बावजूद भी अपने आपरेशन टास्क में सफल रहा उसी दिन की याद में आज भी टोबरूक डे मनाया जाता है। इस युद्ध में भी उन्होने कई पदक हासिल किये थे। द्वितीय विश्वयुद्ध में 8 कायमखानी जवान शहीद हुये थे।

1947 में देश के बंटवारे के वक्त कायमखानियों ने भारत में ही रहने का फैसला किया तथा पूर्ववत सैनिक सेवा को ही प्राथमिकता दी। सरकार ने भी उनका सेना में आरक्षण जारी रखा। कायमखानी समाज सरकार द्वारा सेना में  दिये गये आरक्षण को बखूबी निभा रहें हैं।

यह बात इस तथ्य से साबित हो जाती है कि प्रथम विश्वयुद्ध से लेकर आज तक हर लड़ाई में इन्होने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है व 33 कायमखानी जवानो ने शहादत भी दी है तथा वीरता के कई पुरस्कार भी प्राप्त किये हैं। देश की आजादी के बाद भी सेना में रह कर देश की रक्षा करते हुये 13 कायमखानी मुस्लिम जवानों ने अपना जीवन का बलिदान कर दिया जिसमें से सात जवान तो अकेले झुंझुनू जिले के धनूरी गांव के ही थे।

Comments

Popular posts from this blog

SHADDAD KI JANNAT

Shaddad ek bahut ameer Badshah tha jisne ALLAH ki jannat banaane ki koshish ki lekin ALLAH bhi Al Ahad hai aur uske jaisa koi nahi. Shaddad aur uski Jannat ke baare main thodhi si maaloomaat Quran ke andar milti hai. Shaddad shuru se koi ameer baap ka beta nahi tha balki woh ek yateem tha jisko Raah chalte Musafir miya biwi ne uthaya aur apni aulaad ka darja diya tha. ALLAH ne ek baar Hazrat Israel se sawal kiya ki ae Israel,  tujhe kabhi taqleef mehsoos hui Rooh nikaalte hue kisi shakhs ki. Israel bole mujhe do baar bahut taqleef mehsoos hui Rooh Qabz karne main lekin meri majboori thi Rooh ko kabz karna. Shaddad ki maa chal basi thi jab Shadad paida hua tha. Shaddad ka koi saathi ya paalne waala nahi tha uss waqt ALLAH(S. W. T.)  Ke siwa aur usko do miya biwi apne saath ghar le gaye aur usko apni aulaad ka darja diya. Shaddad bachpan se he ek hoshiyar aur ek be had chalaak baccha tha  aur uske maa baapo ko uss par fakhr tha. Ek baar jab Baadshah ki sawaari raaste se jaa rahi thi toh

ISLAMIC STATUS (No.1)

 ISLAMIC STATUS ON MOTIVATION : "It is not the things a man has that makes him weak, but the things he wishes for!" Islamic Status

ISLAM AND PSYCHOLOGY

  An article on Islam and Psychology Islam and Psychology Upon studying Psychology for my Bachelor’s degree, I have always been curious about the links that I could make between Islam and  Psychology . To my delight, the findings were gratifying. I have always argued that rather than pitting the two apart and having this idea that the two cannot interlink, researchers, scholars and students should further examine how the two can benefit each other and benefit society overall. Psychology, as we understand  i t, is a comprehensive scientific study of the human mind and behaviour. It’s rooted in examining and understanding the human psyche, experiences & personality. In clinical psychology, it’s a tool in aiding one’s positive well being and maintaining that to be the best version of themselves.  Being your best self & seeking knowledge are some of the ethe of Islam and Islamic culture as Abu Hurairah, a companion of the Prophet Muhammed (PBUH), narrated “If anyone pursues a path